Saturday, 16 May 2015

जोखिम वाले खेल..



जब खोने को नहीं रहा कुछ भी…
...तो सूझते हैं जोखिम वाले खेल भी


Friday, 13 February 2015

एक खास तरह का प्यार…

नर्म और गर्म सी ठंडक है दिल में… मुस्कान है होंठों पर… फिर से प्यार हुआ है… इस बार खास। इससे पहले सच्चे प्यार से भाग ली, पकड़ी गई, उसमें जी ली, तड़प ली और उबर भी ली। उबर कर जी भी रही हूँ। और अब खास तरह का प्यार हुआ है।

इसका कोई बाहरी ज़रिया नहीं… भीतर से जागी है ये मोहब्बत… इसका हकदार कोई एक इंसान नहीं, किसी को देखने,सुनने, संग रहने, उसके दिल में बसने की कभी ना बुझने वाली प्यास भी नहीं। स्नेह और परवाह के कई रूपों से पोषित हुआ है ये प्यार। किसी के लिए एक नर्म सा कोना अब भी है इस प्यार में लेकिन वो आकर सोये ही इस बिछौने पर ऐसी अपेक्षा और जानलेवा सा इन्तज़ार नहीं, बल्कि ये आजादी है कि सबके बदले और सबसे ज्यादा प्यार और आराम खुद को दे सकुँ। अपनी ये खुशी खुद को तकलीफ देकर भी पा सकती हूँ, बिना कुछ चाहे बिना किसी को उम्मीद बंधाये, किसी और को खुशी देकर भी पा सकती हूँ।


इसमें तड़प नहीं बस ख्वाब है जिन्हें पूरा करने के लिये मैं किसी पर निर्भर नहीं। ना मैंने शामिल किया किसी को अपने इन नये ख्वाबों ना मैं इस तरह दाखिल हुई किसी के सपनों में कि कभी किसी तरह उन्हें बिखेर ना दूँ इस डर में जीती रहूँ। किसी की सम्पत्ति सा महसूस नहीं करती… ना किसी को इस तरह मेरा होना चाहिये कि उसे मेरे साथ सांस ना आएऔर मुझे उसके बिना सांस ना आए… आजाद हूँ किसी को किसी के भी साथ मुस्कुराते देखने के लिये। मुझे अकेले मुस्कराने में, स्वार्थी बनने में, मोह में पड़ जाने, किसी धुन में खोये रहने और बाकी सबकुछ नज़रअन्दाज़ करने में, अपराधबोध नहीं होता, ये सब अधिकार हैं इस प्यार में। ये आजाद तरह का प्यार सबसे है मुझे। लोगों से, बेवकूफियों से, कमज़ोरियों से, संगीत से, रंगों से, खतरों से, ताकतों से, महत्वाकांक्षाओं से।

खुश करने के लिये बस मैं ही हूँ, अब खुद की तकलीफ से मजे से लड़ सकती हूँ। मुझे किसी को जवाब नहीं देना क्योंकि मैं किसी की अमानत नहीं। अपनी उलझनें सुलझाने में मुझे अब कम वक्त लगता है क्योंकि मुझे किसी का इन्तज़ार नहीं रहता। मैं बिल्कुल मैं हूँ और बहुत आसान है ये प्यार।


कितना हल्का हल्का सा है ये प्यार, बिना शर्त प्यार करने की कोई शर्त भी नहीं इसमें। बडा आध्यात्मिक सा भी है ये प्यार, भरपूर जीना इसका मंत्र है और गिरते पडते उठते रहना इसका जरूरी हिस्सा। रोशनी और अंधेरे से एक सा ही दीवानों जैसा प्यार है ये,भीड में सन्तुलन नहीं खोता और अकेलेपन में तो आराम है इसे। अब कोई और प्यार नहीं भायेगा मुझे।

Tuesday, 4 March 2014

मैं नहीं इस दुनिया की...



चलो माना मेरे दिल, मैं नहीं इस दुनिया की… 
पर ये पूरी दुनिया तो अपनी है, हनी… <3


ज़रूरी नहीं मैं मानूँ एक एक बात इसकी…
पर अपनी बातें तो मनवानी है न एक एक कर सभी… :)


Wednesday, 1 May 2013

मुश्किलें धोखा देने की..



अपनी मुश्किलें 
होती हैं
धोखा देने की..

किसे दूँ? 
ज़माने को, 
तुम्हें, 
या अपने आप को?

मैं ज़माने को चुनती हूँ, 
क्योंकि, 
बाकि दोनों बातें, 
तो एक ही हैं..





Friday, 14 December 2012

इन्तज़ार का वक़्त है…



कल कल बहती बेकल नदी सी हूँ… 
पर इन्तज़ार का वक़्त है… 
हौले हौले गुज़र रहा है… 

इस पार मैं दिल थामे बैठी हूँ...
और उस पार कोई सपना मेरा… 
बन सँवर रहा है… 




Thursday, 15 November 2012

I could not think of a title for this story.. :)


सुनोबहुत प्यार करती हूँ मैं तुमसे, मुग्ध सी हूँ, तुम्हारी सारी खूबियों पर, हैरान सी कि ये सब मेरा है और कितना प्रेम है तुम्हें भी, मुझसे। मुझे लगने लगा है, मोहब्बत ही दुनिया हो जैसे।
लेकिन नहींमैं तुम्हें और कुछ “सुनाना” नहीं चाहतीनहीं चाहती कि तुम जानो मुझमें शहद सी मिठास के साथ साथ इतना ज़हर भी है। नहीं चाहती कि तुम ये कहने लगो मैं सदा सुनाती रहने वाली प्रेमिकापत्नी हूँ। नहीं चाहती, फ़िर तुम भी उन फ़िज़ूल चुट्कुलों को सच समझने लगो जो तुम्हारे दोस्त तुम्हें sms पर भेजते हैं, तुम उन्हें नज़रअन्दाज़ करना बन्द कर दो और तुम सीख लो, मेरी बातों को नज़रअन्दाज़ करना।

सबसे बड़ी वजह तो ये है, कि मैं नहीं चाहती मेरी बातों से तुम्हारा “मूड” खराब हो, क्योंकि जब ऐसा होता है ना, तुम्हारी नज़रें इतनी मोहक नहीं रहती, मुझसे सहन नहीं होता तुम्हारा वो रूप, इसलिये मैं चुप रहती हूँ, मुस्कुराकर जवाब देती हूँ और खो देती हूँ अपने आपको तुम्हारी मुस्कुराहट में।

लेकिन मैं क्या करूँ, कुछ बातें मैं समझ नहीं पाती और कई बातें मैं तुम्हें समझाना चाहती हूँ। काश तुम खुद ही पढ़ लो ये सब मेरी आँखों में। इतना प्यार करती हूँ अपनी इस ख्वाबों सी जिन्दगी से, इतना डरती हूँ इसे खोने से कि मैंने आँख मूंदना भी सीख लिया है कुछ बातों पर।

बहुत मिलते हैं हमारे विचार, हम सोलमेट्स जो हैं। और क्या तुम जानते हो, मैं टकराने ही नहीं देती हमारे विचार, ज़रूरी तो नहीं तुम मेरी तरह सोचो, मेरी ही नज़र से देखो। ज़रूरी तो है तुम्हारा मुस्कुराते रहना। हालाँकि सोचने लग जाती हूँ, और अच्छे से समझे होते तुम मुझे तो मेरा प्यार शायद और सच्चा होता। पर यकीन करो मेरा, मुझे सच्चा प्रेम है तुम से अभी भी।

तुम काम करते हो, अपने लिये, मेरे लिये, हमारे घर के लिये। तुम्हें ये अहसास है, तुम्हारा काम उपयोगी है देश के लिये, तुम गर्व से भरे हुए और थके हुए घर आते हो। मैं भी काम करती हूँ ‘हमारे लिये’, मैं वो सब करने की कोशिश करती हूँ जो किसी काम का नहीं ज़्यादातर लोगों की नज़र में, लेकिन जो मैं ना करूँ तो तुम्हारा कोई काम आसानी से ना हो। ‘मैं’ ‘हमारा घर’ सम्भालती हूँ, रोज़ एक सा काम करती हूँ जिसकी कहीं कोई नुमाइश नहीं कर सकती क्योंकि वो तो ‘मेरा’ काम है। मैं ज़्यादा नहीं थकती, मुझे ज़्यादा दिन बीमार होने की छूट नहीं। और तुम मीठी बातें भी तो ऐसी करते हो, सारे दिन की थकान उनमें घुल जाती है। पर तुम्हारी थकान ऐसे नहीं दूर होती, तुम्हारा मूड अच्छा रखने की खातिर मैं हमारा घर सँवरा रखती हूँ, अच्छी चाय, अच्छा खाना बनाती हूँ, जिसे हम साथ बैठकर खाते हैं, आखिर, मीठी बातों से सिर्फ़ मेरा ही पेट भर सकता है।

मैं भी कोई ‘उपयोगी’ काम करना चाहती थी, देश के लिये, पैसा ही नहीं लोकप्रियता कमाना चाहती थी, लेकिन मैं सोचती थी कि कैसे “मेरा काम” और “हमारा घर” “मैं अकेले” सम्भाल पाऊँगी। मैंने कोशिश की थी, लेकिन कुछ बातें तब भी समझ ही नहीं सकी मैं। क्यों तुम्हें बिखरा हुआ घर दिखायी नहीं देता और जैसे ही दिखायी देता है तुम कहते हो, ‘कम से कम’ घर तो ठीक रखा करो, कोई मेहमान अगर घर आ जाये… मैं मन में सोचती हूँ ये तो “हमारा घर” है ना, कुछ चीज़ें तुम भी करीने से रखो, कभी मैं भी वर्कलोड की बात कह सकूँ, कभी शाम की चाय, रात का खाना मुझे तैयार मिल जाये और ये कोई अनोखी सी बात ना हो। मेरी तरह तुम भी ये सब यूँ ही करो, मेरे प्यार में। खैर, तुमने बस एक बार कहा कि मैं इतना काम करती हूँ कि तुम्हें भूल ही जाती हूँ, और मैं पिघल गयी। मेरी रचनात्मकता घर में बहने लगी, मैंने सोचा मैं हमारे घर को स्वर्ग बनाऊँगी, हमारे होने वाले बच्चों को अच्छे संस्कार देकर देश के भविष्य में योगदान दूँगी। लेकिन दिक्कत ये है कि मुझे याद है कि ये बच्चे तुम्हारे भी तो होंगे ना और दुखी हो बैठी हूँ कि तुम जो बाँट लेते मेरी ज़िम्मेदारी तो मैं भी सिर्फ़ हाउसवाइफ़ नहीं होती। मैं बहुत अनदेखा करती हूँ इन विचारों को, क्योंकि मैं बिना किसी शिकायत, बिना किसी शर्त ही तुमसे प्यार करना चाहती हूँ। ऐसा प्यार जिसकी लोग मिसालें दें, पर मैं क्या करूँ मैं नहीं समझ पाती अपने ही मन को, अपने ही प्यार को।



मुझे खुशी मिलती है तुम्हारे लिये ये सब करके, लेकिन मैं चाहती हूँ ये खुशी कभी कभी तुम्हें भी मिले। समझो तुम कभी मेरी जगह आकर मेरी ज़िन्दगी। पर तुम ये राज़ की बात जानते हो, मुझे समझना उतना ज़रूरी नहीं जितना मुझे प्यार करना, मेरा सम्मान करना, मुझे हँसाना और यूँ ही मेरे दीवाने बने रहकर, मुझे इस मोहपाश में बाँधे रखना। कभी कभी तुम भी मेरा मूड खराब कर देते हो यूँ ही, पर मैं तुमसे बदला लेकर अपना ही नुकसान नहीं कर सकती, हमारा घर सदा प्रेम से भरा रहना चाहिये ना।

ये सब मैं तुम्हें नहीं सुनाऊँगी। दुनियाभर की औरतों तुम सुन लो, इस दुनिया को बेहतर करने में मैं किसी की कोई मदद नहीं कर सकती। मैं कोई कड़वी बात नहीं कहूँगी अपने या तुम्हारे हक़ के लिये भी। मैने स्वंय को ही प्रकृति मान लिया है इसलिये इतना तो मैं सह सकती हूँ। मैंने पैसा नहीं कमाया, नाम नहीं कमाया, बस प्यार कमाया है, जिसे मैं खो नहीं सकती।
मैं बस इतना करूँगी कि हमारे बेटे को एक बेहतर प्रेमी बनाऊँगी, उसे त्याग़ की सिर्फ़ कदर करना ही नहीं खुद त्याग करना भी सिखाऊँगी… उसे सौन्दर्य, प्रेम, समर्पण पर केवल कविताँए करना ही नहीं, इन सबकी मिसाल खुद बनना भी सिखाऊँगी… ताकि उसे कोई, ज़्यादा सच्चा प्यार कर सके।
और अगर सब बेटे ऐसे होंगे, तो मुझे मेरी बेटी को कुछ नया सिखाने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी। उसे बस मैं बताऊँगी कि प्यार से भागना और प्यार को खोने से डरना, दोनों ही ठीक नहीं। प्यार को रास्ते की, अपने विकास की, रुकावट ना बनने दो, विश्वास करो, तुम इतनी मज़बूत हो कि प्यार को साथ लेकर चल सको।

मैं सपने देखने लगी हूँकैसा होकिसी दिन बेटी अपनी पसंद का टीवी शो देख रही हो और बेटा रसोई मे मेरी मदद कर रहा हो। कभी बेटा अपने स्कूल का प्रोजेक्ट बनाने में जुटा हो और बेटी उसकी बिखराई चीज़ें समेट रही हो। तब किसी एक को त्याग की मूरत बनने की ज़रूरत ही कहाँ होगी, तैयार होंगे ये बच्चेअपने लिये और अपने प्यार के लियेअपने घर के लिये और अपने देश के लिये एक साथ काम करने के लिये। इनके पास वक़्त ही नहीं होगा मेरी तरह डरते रहने का। पर मुझे डर हैतब तक बाहर की दुनिया जाने कितनी बदलेगी।
                                                     
                          

Monday, 30 January 2012

सुनो, सपनों के राजकुमार...



सुनो, सपनों के राजकुमार
तुम्हारे सिवा किसी से ना चाहा प्यार
चुप सह लिया इसीलिये मन पर हर वार
और मांगा तुम्हें, चाहा तुम्हें
पहले से ज़्यादा हर बार

अब सोचती हूँ,
क्या उठा पाओगे तुम
मेरी अपेक्षाओं का भार
जब मिलोगे आखिरकार
मुझसे पहली पहली बार

मैं तो रूप बदलती हूँ
तुम साथ दे सकोगे?
तल्लीनता से बहती नदी
या मोहक फ़ूलों भरी डगर
बन सकोगे सागर प्यास बुझाने वाले
या दूजे ही पल प्यासे इक भ्रमर?


हो जाऊँ कभी जो आत्मलीन
हो जाये मेरा दर्शन गहन
जो ना समझो, उपहास ना करना
कभी बन जाये बहुत हठी मन,
सच लगे जो दिखलाए दरपन
समझाने का प्रयास ना करना

माहिर हूँ अकेले चलने में
ठोकर खाकर फ़िर सम्भलने में
खुद रचा है मैंने ये संसार
है ये मेरी रियासत, मेरा महल
इसीलिये खीझ उठूँगी मैं
जब जब तुम दोगे दखल

लेकिन बखूबी आता है तुम्हें
प्यार करना, खयाल करना
हाथ थामकर आगे चलना
इस आराम, इस सुख की खातिर
चाहूँगी मैं कभी कभी, पीछे चलना
सब मेरा हो, मैं तुम्हारी हो जाऊँ
फ़िक्र करना तुम, मैं कहीं खो ना जाउँ



माना, ज़रूरतों से पहले
बदलती हैं मेरी ख्वाहिशें
पर मेरे सपनों में
तुम भी रंग रूप बदलते हो
हर तरह से चाहती हूँ मैं तुम्हें
हर रूप में तुम मुझ पर मरते हो

तुम्हारी प्रेरणा तुम्हारी हमसफ़र
करती हूँ परवाह भी हर पहर
लेकिन साथ तुम्हारे होते भी 
रह ना जाऊँ अकेली ये सोचकर
कभी कभी मैं जाती हूँ डर

खैर, तुम हो सपनों के राजकुमार,
सपने होते हैं हसीं
अगर सच में मिलें हम,
क्या बरकरार रहेगा यकीं?





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